Saturday, October 8, 2016

कोशिकाओं के विभाजन

अप्रत्यक्ष वितरण (माई टोसस) और शमन विभाजन (मयूसीस) अच्छी तरह से समझें

पृष्ठभूमि

मानव शरीर की शुरुआत केवल एक कोशिका से होता है, लेकिन जब तक मानव शरीर पूरा होता है, तब तक 370 खरब अधिक कोशिकाओं बनकर हमारे शरीर को पूरा कर चुके होते हैं। इन कोशिकाओं में से प्रत्येक सेकंड करोड़ों मरते जबकि उनकी जगह लेने के लिए करोड़ों बनते हैं। जिस प्रक्रिया के द्वारा कोशिकाओं पैदा होते हैं वे कोशिकाओं के विभाजन कहलाता है। इस प्रक्रिया में एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाओं बनाता है, वह दो कोशिकाओं विभाजित होकर चार कोशिकाओं को बनाते हैं, यह चार कोशिकाओं विभाजित होकर आठ कोशिकाओं को बनाते हैं, और इस प्रकार यह सिलसिला इसी तरह चलता रहता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत डीएनए आनुवंशिक एन्क्रिप्टेड (जीनियटक कोड) की नकल से होता है।

ठीक

कोशिकाओं के विभाजन के दो प्रकार होते हैं: अप्रत्यक्ष वितरण (माई टोसस) और शमन विभाजन (मयूसीस)। वह एकमात्र जल्दी स्टेम जिससे शुरुआत होती है इसमें लोनिया (क्रोमोसोम) के 23 जोड़े होते हैं, माँ और पिता दोनों में से एक जोड़ी। यह जोड़ी डीएनए से मिलकर बनते हैं, जो आनुवंशिक निर्देश संग्रहीत होती हैं। हर बार जब स्टेम विभाजित होना चाहता है, तो यह आनुवंशिक एन्क्रिप्टेड भी नकल करता है, और दोनों प्रकार के कोशिका विभाजन एक ही चरण शुरू होता है। प्रत्येक लोनिया (क्रोमोसोम) के डीएनए का एकमात्र अणु (मालीक्योल) दोहरा बनकर लगभग ट्रांसक्रिप्ट बनाता है। अगर कोशिकाओं नशो व नुमा और मरम्मत के लिए इस्तेमाल होते हैं, तब उन्हें निर्देश के पूर्ण जोड़ी की जरूरत होती है। प्रत्येक नया पुत्री कोशिका (डाटर सेल) 23 पूरी जोड़े को प्राप्त करता है। इस अप्रत्यक्ष वितरण कहते है। लेकिन अगर कोशिकाओं शुक्राणु (ासपरम) या अंडाकार (ाीग) बनाना होता है, तब उन्हें एक जोड़े की आवश्यकता है। इसलिए जब शुक्राणु बीज़े बार और करता है, प्राप्त गये भ्रूण में चार के बजाय दो पूरी जोड़े हैं। इस कटौती विभाजन कहते हैं।

सारांश

कोशिका विभाजन के दो प्रकार हैं। परोक्ष वितरण में, हर पुत्री कोशिका दो पूर्ण लोनिया (क्रोमोसोम) जोड़े को प्राप्त करता है, लेकिन कटौती विभाजन में, उनमें से प्रत्येक एक ही प्राप्त करता है।

कोशिका विभाजन में डीएनए नकल बनती है और फिर उसे पुत्री कोशिकाओं में विभाजित है।

कोशिकाओं के वितरण की निगरानी

कोशिकाओं के विभाजन को अनिवार्य रूप रूप में विनियमित किया जाना चाहिए, ताकि जब मानव शरीर पूर्ण रूप अख्तियार करता है तो नशो व नुमा रुक जाती है, और घाव भर जाने के बाद मरम्मत की प्रक्रिया समाप्त हो जाता है।

2001 में, तीन वैज्ञानिकों को फिलियात (फिजियोलॉजी) या चिकित्सा में इस काम के सिलसिले में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिसमें उन्होंने कोशिकाओं के चक्कर के रहस्यों से पर्दा उठाया था। पॉल नर्स, टिम हंट, ाोरलैलांड हार्ट वैल कुछ महत्वपूर्ण सालमात से पर्दा उठाया जो विभाजन के विभिन्न चरणों में कोशिकाओं के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने रासायनिक 'आरंभ' कुंजी को उजागर जो चक्कर शुरू करती है, और कुछ देखभाल करने वालों को ढूँढा जो यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक चरण सिलसिलेवार रूप में स्थित है। इन कार्यों की समझ का विज्ञान और चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों में काफी गहरा प्रभाव पड़ा था।

क्या आप जानते हैं?

जब तक आप यह वाक्य पढ़ चुके होंगे, अपने 50 करोड़ कोशिकाओं मर कोशिका होने वाली विभाजन से बदले जा चुके होंगे !!!
apratyaksh vitaran (maee tosas) aur shaman vibhaajan (mayoosees) achchhee tarah se samajhen

Thursday, October 6, 2016

चंदा मामा और अतिरिक्त ग्रह चंद्रमा



ब्रह्मांड में मौजूद सब कुछ किसी  किसी के पास चक्कर काट रही है। सितारों आकाशगंगाओं के केंद्र के आसपास, ग्रह   सितारों के आसपास ारो चंद्रमा ग्रहों के आसपास कक्षा में चक्कर काट रहे हैं।हमारे सौर प्रणाली में मौजूद कुछ चाँद हुई ताज़ा पर परनिले ज्वालामुखी मौजूद हैं जबकि कुछ के स्तर के नीचे भव्य सागर बह रहे हैं। यह चंद्रमा हमें सौर प्रणाली की वे इन कही कथा सुनाते हैं जो हम में से ज्यादातर नहीं जानते यह हमें सौर प्रणाली के काम करने के्रीकह कार को बेहतर तरीके से समझाते हैं। हमारे ब्रह्मांड में सक्षम आवास चंद्रमाओं की संख्या सक्षम आवास ग्रहों से कहीं अधिक हो सकतीहै। हमारे सौर मंडल में कुल मिलाकर आठ ग्रह हैं। इनमें से केवल 6 के आसपास चंद्रमा हैं। मगर इन चाँद हुई ताज़ा की संख्या अच्छी खासी है लगभग 168 के करीब चाँद इन 6 ग्रहों के आसपास चक्कर लगा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक चंद्रमा एक मफरद और अलग पहचान रखता है और अपनी मिसाल आप है। जब हम सौर प्रणाली की समीक्षा करते हैं हम ग्रहों की अच्छी खासी तादाद दिखती है मगर इन ग्रहों के आसपास चक्कर काटने वाले महताबों की संख्या इन से कहीं अधिक है। सौर प्रणाली में मौजूद ये चाँद कई तरह से उनकी ग्रहों से अधिक रुचि होते हैं जिनके ओर वह चक्कर काट रहे हैं।

हमारे सौर मंडल में हवा और तापमान से वंचित और मृत चाँद भी हैं जैसे हमारा अपना चंदा मामा। फिर सूर्य के बाहरी कक्षा में मौजूद ग्रहों के आसपास घूमते हुए ऐसा चाँद भी हैं जिनके भूमिगत अपने समुद्र और अपने पर्यावरण (Atmosphere) भी हैं। भव्य जोला मक्खी, ठंडे स्थिति और सौर प्रणाली के सबसे बड़े समुद्र यह सब चंद्रमाओं पर ही मौजूद हैं। कुछ चंद्रमाओं पर बर्फीले ज्वालामुखी (Ice Volcanoes) मौजूद हैं, कुछ चंद्रमाओं पर पर मीथेन गैस की झीलों, मीथेन गैस के बादल और बारिश प्रणाली भी मौजूद है। उन पर मौजूद ज्वालामुखी इतना जीवित और कारक है कि वह चंद्रमा की सतह को स्थायी बना रहे हैं। हर प्रकार आसपास के गुबार को उगलते हुए चन्द्रमा हमारे सौर प्रणाली का हिस्सा हैं। सौर प्रणाली में मौजूद चंद्रमाओं का माहौल और वातावरण इतना विविध फया है कि हम सोच भी नहीं सकते।

बृहस्पति और शनि के चंद्रमा इतने जटिल और परसरार हैं कि वे वास्तव में एक अलग ही जहां की तरह हैं। बृहस्पति और शनि प्रत्येक के िलीहदह िलीहदह 6 0 से अधिक चंद्रमा हैं। इस गैसीय देव और उनके चंद्रमाओं एक तरह से छोटे सौर प्रणाली (Mini Solar System) स्थापित कर रखा है। उनके हर चाँद की एक अद्वितीय पहचान है। आया पॉइंट्स काले और सफेद (Iapetus) दो रंगों का चाँद (देखें। फोटो नंबर 1)। टाइटन (Titan) अपने घने वातावरण और नारंगी रंग की वजह से सबसे प्रतिष्ठित नजर आता है (देखें। फोटो नंबर 2)। बर्फीले ांसीलीडस (Enceladus) बर्फ के चश्मे Geysers) ) 200 मील वातावरण में छोड़ता हुआ एक अद्वितीय चाँद (देखें। फोटो नंबर 3)। इन सभी चंद्रमाओं की अद्वितीय पहचान के बावजूद जो एक चीज उनमें समानता है वह उनका अपने ग्रह के प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellite)होना है। इस शक्ति गुरुत्वाकर्षण की वजह से अपने ग्रह के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं। मगर चंद्रमा केवल ग्रहों के आसपास ही चक्कर नहीं काटने बल्कि इससे बढ़कर काम करते हैं। इस ग्रहों उनके मदारों में स्थिरता के साथ चिपके रहने सहायता करते हैं ताकि सौर प्रणाली शांत भाव में आज भी क़ायम रहे।

चंद्रमाओं की इस अनूठी पहचान और आपस की असमानताओं नियम विज्ञान और अनुमान चट्टानी और गैसीय तसादमों के बीच बहुत ही दिलचस्प सद्भाव की अभिव्यक्ति है। आप नियमों विज्ञान के परिणाम प्राप्त होने वाली किसी भी चीज को तो अटकलें कर सकते हैं कि वह कैसी होगी मगर यादृच्छिक और अनुमान टकराव के परिणाम क्या हासिल होगा और इस बात का क्या संभावना होगा कि वे एक निश्चित माहीत ही हासिल कर सकें यह कभी भी सही तरह से अनुमान नहीं कर सकते  ग्रह और चंद्रमा दोनों एक ही जन्म प्रक्रिया से गुजरते हैं। एक बार सितारे के जन्म की प्रक्रिया शुरू होफलस्वरूप बचने वाली ओर और धूल गैस ै बादल इतने होते हैं कि वे एक दूसरे से जुड़कर चट्टान बनाते हैं, तो वह चट्टान बंटे बनाती हैं, वे बंटे बड़े बंटे बनाते हैं। यह प्रक्रिया तह पर तह चढ़ाने की प्रक्रिया(Accretion) कहलाता है। बिल्कुल ऐसा ही जैसे एक बर्फ की गेंद बनाकर एक बर्फ के पहाड़ की चोटी से नीचे फेंक देते हैं। जैसे-जैसे वह गेंद नीचे लड़का जाएगा वैसे-वैसे बड़ी और मुश्किल होती जाएगी। इसी तह दार प्रक्रिया के परिणाम में ग्रहों और उनके आसपास मौजूद चंद्रमाओं का जन्म होता है। हालांकि यह प्रक्रिया बहुत ही सरल लगता है, लेकिन यह होता कैसा है 2003 ؁ से प्रभावी पहले कोई नहीं जानता था। हम ग्रहों के जन्म के इस तरह का पता लगाने के लिए अपने पिछले लेख " माहौल ग्रह और उसके पड़ोसी स यारे "में पर्याप्त विस्तार के साथ बता चुके हैं तो यहाँ फिर से नहीं दोहराना होगा।

अब यहाँ यह सवा लिमिटेड बनाई गई है कि अगर सब चंद्रमा एक ही तरीके से पैदा होते हैं तो यह बहुत अलग और अनूठा क्यों हैं। केवल बृहस्पति के दो चंद्रमाओं को ही लीजिए। कललस्टो ( Callisto ) औरचलाने की मेड (Ganymede)  दोनों ही बहुत अलग चाँद हैं जबकि दोनों एक ही गैसीय ओर और धूल के बादल से अस्तित्व में आए हैं। बृहस्पति के जन्म के पहले दौर में चलाने की मेड बृहस्पति के करीब पैदा हुआ। उस समय वहां ओर व धुंध काफी बादल मौजूद थे। पदार्थों की पर्याप्त मात्रा मौजूद होने का लाभ उठाते हुए वह बहुत जलदलग लगभग 10 हजार साल में पैदा हो गया। यह तापमान जन्म के समय काफी अधिक था। तापमान ने बर्फ चट्टानों से अलग कर दिया था जिसकी वजह से इसके विभिन्न भौगोलिक परिदृश्य आज भी देखे जा सकते हैं (देखें। फोटो नंबर 4)। वास्तव में चाँद ऐसे क्यों दिखते हैं जैसे वे आज हैं। उनकी इस आकृति मूल वजह ऊर्जा वह ऊर्जा जो उन्हें इस तह दार प्रक्रिया में मिली और इसमें से कितनी ऊर्जा उन्होंने बचाकर रखी और कितनी ऊर्जा उन्होंने खो दी। यह सभी कारकों हमें इस बात को समझने में मदद देते हैं कि चाँद ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं और आज अपनी इस मौजूदा स्वरूप में क्यों देखो।

कललस्टोकी स्तर एक अलग कहानी सुनाती है। यह जगह पैदा हुआ था जहां गैस और धूल के गुबार और तापमान अपेक्षाकृत "कम मौजूद थी। उसने पैदा होने में अधिक समय लिया और जल्द ही शांत भी हो गया। इस स्तर चलाने की मेड बिल्कुल अलग समान है। यहाँ चट्टान और बर्फ कभी िलीहदह हो ही न सके (देखें। फोटो नंबर 5)। चंद्रमाओं के जन्म के क्षेत्र उनके बचे रहने और नष्ट होने कि भी ज़िम्मेदार होते हैं। बहुत अधिक ग्रह के करीब होने का मतलब है कि बल गुरुत्वाकर्षण इसके चंद्रमाओं को नष्ट कर दे जाएगा। वैज्ञानिकों को पूरा विश्वास है कि बृहस्पति के बहुत सारे चंद्रमाओं के साथ ऐसा ही हुआ होगा। जब बृहस्पति जवान था तो ऐसा संभव है कि उसके हर तरफ चाँद पैदा होने के लिए बेचैन थे। मगर उनमें से ज्यादातर को पैदा होते ही बृहस्पति ने निगल लिया था। बृहस्पति के बाकी मानिन्द और बचे हुए चाँद जो आज हमें देखते हैं उनमें से वह जीवित रहने भाग्यशाली चाँद हैं जिन्होंने अपने कक्षा को बृहस्पति से सही दूरी पर संतुलित कर लिया था। मगर बृहस्पति की लगातार यह कोशिश रहती है कि वे अपने बचे चंद्रमाओं को भी निगल ले। इस विशालकाय ग्रह की शक्ति गुरुत्वाकर्षण वहाँ तक जा पहुंचती है और उन्हें अपने मदारों में टिके रहने में काफी परेशान करती है। बृहस्पति बल गुरुत्वाकर्षण उनके मृत चंद्रमाओं को बहुत कठिन और नाटकीय दुनिया बनाता है।

बृहस्पति हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसके लगभग 63 चंद्रमा हैं। इनमें से 4 बड़े चंद्रमाओं को गलीलैं (Galilean Moons) कहते हैं। उनका यह नाम गलील (Galileo) के नाम पर पड़ा है जिसने उन्हें1610 ؁य में खोज की थी। यह चंद्रमा हमें बताते हैं कि कैसे शक्ति गुरुत्वाकर्षण उनकी संरचना और उनके व्यवहार को नियंत्रित करती है। इनमें से पहला चाँद जिसका नाम आईओएस (Io) वह बृहस्पति सबसे करीबी कक्षा में 260 हजार मील ऊपर चक्कर लगाता है (देखें। फोटो नंबर 6)। यह दूरी उतना ही है जितना हमारी पृथ्वी से हमारे चाँद का है। मगर हमारे चंद्रमा की तरह इस स्तर पर उल्का गड्ढे मौजूद नहीं हैं  वैज्ञानिक समझ गए कि इस स्तर नई नई है। मगर ऐसा कैसे हो सकता था। हर बार जब वह आई ओ चाहे अंतरिक्ष यान से देखा या दूरबीन से उन्हें इस स्तर अलग ही नजर आती थी।आईओएस के स्तर ऐसे परिवर्तित हो रही थी जैसे कि ग्रहों में मौसम बदलते हैं। उन्हें अपनी इस असमानता मात्रा की वजह समझ में नहीं आ सकी। जब नासा ने पहली बार अंतरिक्ष यान आईओएस के करीब बिताया तो वह हैरान रह गए। उन्होंने वहाँ दर्जनों जीवित ज्वालामुखी देखे और फिर प्रत्येक भाषा में एक ही सवाल था कि चंद्रमा की सतह पर जीवित ज्वालामुखी कैसे हो सकते हैं। केवल एक ही शक्ति वहां यह काम कर सकती थी और वह थी बल गुरुत्वाकर्षण।

बृहस्पति के बल गुरुत्वाकर्षण इतना जबरदस्त है कि वह चांद पर पहुंच कर इस स्तर को चरमरा रहा है। और केवल बृहस्पति के बल गुरुत्वाकर्षण ही प्रभावित नहीं होता बल्कि जब वे अन्य चंद्रमाओं के पास से गुजरता है तो उनकी तकली शक्ति भी प्रभावित होती है। इसलिए चाँद के दिल को हर समय धरा दबाव झेलना पड़ता है। इस मदो भाटा घर्षण (Tidal Friction) कहते हैं। इस प्रक्रिया से उसके दिल में जबरदस्त गर्मी पैदा होती है। बस के रूप में एक कोट हैंगर को तब तक मोड़ें जब तक वह टूट न जाए बस वहाँ तापमान कुछ ज्यादा ही पैदा होती है। यही घर्षण शक्ति आईओएस (Io) के दिल को इतना गरमाया है कि वह सौर प्रणाली में मौजूद एक जबरदस्त जीवित ज्वालामुखी दुनिया बन जाती है। स्थायी संघर्ष आईओएस के दिल में तापमान हजार डिग्री तक पहुंचा देती है और वह लावे को उगल देताहै। आई ओ मदो भाटा और शक्ति गुरुत्वाकर्षण के आपसी संबंध का सबसे अच्छा उदाहरण है। आईओएस स्थायी बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं के बीच पिस्ता रहता है जिसके नतीजे में जबरदस्त गर्मी पैदा होती है। ज्वालामुखी बाढ़ लावे के रूप में आईओएस के स्तर पर बहते हैं जो की वजह से किसी शहाबया के टकराव का कोई संकेत नजर नहीं आता।

शक्ति गुरुत्वाकर्षण आईओएस पड़ोसी चंद्रमा यूरोपा (Europa) को भी गर्मी है (देखें। फोटो नंबर 7)। यूरोपा के कक्षा बृहस्पति से काफी दूर है इसलिए यह थोड़ा ठंडा है। लावे के बजाय यहाँ के स्तर बर्फीले है।अंटार्कटिका में सबसे कम तापमान शून्य से 128 डिग्री दर्ज किया है। जबकि यूरोपा की सतह इससे दोगुनी ठंडी होती है। मगर इस बर्फ के नीचे पानी का ठाटें मारता सागर मौजूद हो सकता है। जिसको वही मदो भाटा वाली मलाई तापमान करती है जो आईओएस को ज्वालामुखी बनाती है। यूरोप में निश्चित रूप से इस स्तर के नीचे समुद्र मौजूद हो सकता है जिसका संपर्क सतह के नीचे चट्टान कशर भी होगा जो उसे तापमान और उर्वरक जो जीवन बरकरा आर रखने के लिए चाहिए पहुंचा इसलिए होगा। भविष्य में शायद हम कोई खोजी यूरोपा की बर्फ के नीचे की जांच के लिए भेज सकें और हो सकता है कि हम वहाँ के गर्म पानी में जीवन की खोज कर लें। बृहस्पति के आईओएस और यूरोपा से दूर अधिक 60 चाँद और हैं। इस बृहस्पति से काफी दूर चक्कर काट रहे हैं जहां उसकी शक्ति गुरुत्वाकर्षण इतना शक्तिशाली नहीं है। यहां यह इतना शक्तिशाली नहीं है कि मदो भाटा का प्रभाव पैदा कर सके जिससे उन्हें गर्मी बहम पहुंचे। इसलिए यह अब तक दनियाएँ ठंड और बंजर हैं  मगर यह बिल्कुल रूखी फीकी नहीं हैं। वे अनंत शहाब्यूं के तसादमों के निशान से सजी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह ही निशान हमें बताते हैं कि कैसे इन तसादमों के बाद बृहस्पति के चंद्रमाओं प्रणाली अस्तित्व में आया।   

शनि के चंद्रमाओं प्रणाली भी बृहस्पति से कुछ कम नहीं है। इस लगभग "दो लाख ईमेल पर फैला है। देखा जाए तो शनि के एक अरब से भी अधिक चंद्रमा हैं। हाँ एक अरब चाँद। तब तक कोई भी चीज़कसीग्रह का चांद ही कहलाएगी जब तक वह किसी ग्रह की कक्षा में चक्कर लगाए चाहे बात कोई कंकड़ हो याकसी शहर जितनी बड़ी कोई चट्टान। ये सब मिलकर शनि के छल्ले बनाते हैं। शनि के छल्ले अनंत बर्फीले टकरों और चट्टानों शामिल हैं  उनका मात्रा एक कंकड़ से लेकर एक शहर के रूप में हो सकता है। इन सभी छल्लों के टुकड़े जो 10 से 20 मीटर तक हो सकते हैं उन्हें कोई नाम तो नहीं दे सकते ना ही उनकी कोई िलीहदह पहचान करके चाँद नाम दिया जा सकता है। मगर जब कोई एक या दो किलोमीटर का कोई टकरा नजर आता है तो आप इसे चाँद या मा हचह कहने के लिए सोचते जरूर हैं।

शनि के छल्ले खगोलीय दुनिया में समय रिमोट रहस्य बने हुए थे। इस बात को जानने के लिए वे कैसे बने थे। नासा ने गेमिंग खोजी (Cassini Probe) 12 वर्षीय मिशन पर भेजा ताकि वह ज़हलावर इस गिर्द  छल्लों, और चंद्रमाओं पर शोध कर सके। गेमिंग ने शनि की शानदार तस्वीरें लीं। एक बार गेमिंग शनि की छाया में मौजूद था और उस पर सूर्य शनि की छाया बना रहा था। सूरज बिल्कुल शनि के पीछे मौजूद था और शनि के पीछे एक बिंदु भी नजर आ रहा था। वह बिंदु उसका कोई चाँद नहीं था बल्कि वह वहां से दूर अंतरिक्ष में एक अरब मील की दूरी पर मौजूद हमारी पृथ्वी थी (देखें। फोटो नंबर 8)। शनि, उसके आसपास मौजूद छल्लों और चंद्रमाओं के बारे में हमें ज्यादातर जानकारी गेमिंग के द्वारा ही पता लगीं। गेमिंग के पहुंचने से पहले हम समझते थे कि शनि के केवल आठ छल्ले हैं लेकिन अब हम जानते हैं उनकी संख्या 30 से भी अधिक है। गेमिंग द्वारा जो बातें हम वहाँ देखें हालांकि हम पहले ही देख चुके थे मगर जितनी संकल्प के साथ गेमिंग ने हमें यह जानकारी निष्पादन पहुंचाई हैं वह दिमाग को हिला देने वाली हैं। वैज्ञानिक मानते थे कि ये छल्ले बच्ची कच्ची गैस और आसपास के गुबार से बने था जो शनि के बनने के बाद 4 अरब साल पहले बच गई थी। मगर उन्हें हैरत इस बात पर था कि इतनी पुरानी बात ब्रह्मांडीय धूल और धूल से इट जाना चाहिए था मगर शनि के छल्ले तो साफ और चमकदार देखो बल्कि नए लगते हैं। इस बात का पता लगाने के लिए मिशन नियंत्रण ने गेमिंग उन छल्लों के पास किया। इस खोजी देखा कि छल्लों में मौजूद बर्फ के टुकड़े स्थायी एक दूसरे से टकरा रहे हैं और टूट रहे हैं और हर नया संघर्ष एक नए स्तर को उजागर करता हु एस जो नई और झिलमिलाताहै।

शुरू में नवजात शनि के छल्ले नहीं थे बस काफी सारे चाँद ही थे। फिर किसी समय अतीत में कोई दम दार सितारा अंतरिक्ष बसी् से आकर उसके किस चाँद से टकरा गया। वह दम दार सितारा उसे चांदी से टकरा कर अरब हा टुकड़ों में बट गया था और इस संघर्ष ने शनि के चंद्रमा उसके कक्षा से निकलकर उसके पास कर दिया था। शनि की जबरदस्त ताकत गुरुत्वाकर्षण ने चाँद को भी टुकड़े कर दिया था।अब दम दार स्टार और शनि के चंद्रमा के आसपास और गुबार ने मिलकर शनि की शक्ति गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव इस के इन टुकड़ों को शनि के गरदछलों के रूप में प्रस्तुत कर दिया था।

चंद्रमाओं की कहानी बल गुरुत्वाकर्षण की ही कहानी है। शक्ति गुरुत्वाकर्षण इन चंद्रमाओं को उनके कक्षा में स्थापित करती है, वह अपने दिल को गर्मी है और अपने स्तर को आकार प्रदान करती है और अंत में सब कुछ नियंत्रित करती है। इन के अस्तित्व और सुरक्षा उसी के हाथ में है। शक्ति गुरुत्वाकर्षण केवल चंद्रमाओं को ही नष्ट नहीं करती बल्कि यह नया चाँद भी बनाती है। इस शहाब्यूं, उपग्रहों,और पूरे के पूरे ग्रह को भी किसी ग्रह का कैदी बनाकर उसका प्राकृतिक उपग्रहों बना देना है। हम जानते हैं कि बल गुरुत्वाकर्षण ही चंद्रमाओं बनाने का कारण है। आम तौर से इस बचे हुए गैसीय ओर और धूल से चाँद बनाती है जो किसी सीआर एस के जन्म के बाद बच जाते हैं। मगर ताकत गुरुत्वाकर्षण एक और तरीके से भी चाँद बनाती है। यह उन्हें पकड़ कर किसी भी ग्रह का प्राकृतिक उपग्रह बना देतीहै। जरा एक आवारा ओर उल्का या उपग्रहों की कल्पना कीजिए कि वह भटकता हुआ एक ग्रह के करीब आ गया है। शक्ति गुरुत्वाकर्षण किसी विज्ञान कथा फिल्म में दिखाए हुए जाल की तरह उसे चपेट में ले लेती है। अगर जरा सी भी कम तकली शक्ति हुई तो वह बच जाता है और अगर थोड़ी सी ज्यादा हुई तो ग्रह से जा टकराता है और अगर सब उचित दूरी से आता हुआ कोई शहाबया या उपग्रहों पकड़ा गया तो वह इस ग्रह की कक्षा में चक्कर काटने पर मजबूर कर देती है और वह इसका चाँद बन जाता है।

मंगल के दो छोटे चंद्रमा हैं जिनके नाम तुबोस ( Phobos ) और डीमोस (Deimos) हैं (देखें। फोटो नंबर 9)। ये दोनों कैद उपग्रह (Captured Asteroids) ही हैं। उनमें से एक बाहर जोर लगा रहा है और अंततः मंगल ग्रह से चलाने प्राप्त कर लेगा। दूसरे इससे करीब करीब होता जा रहा है और अंततः इससे टकरा कर चकनाचूर हो जाएगा। करवीथनिया ( Cruithne ) अक्सर पृथ्वी का दूसरा चांद कहते हैं यह तीन मील में फैला हुआ है (देखें। फोटो नंबर 10)। इतने छोटे परिमाण की बात की खोज के साथ 1986 ؁ ई। यह बहस शुरू हो गई कि आखिर चाँद कहते किसको हैं। केवल कुछ हजार साल पहले ही करवीथनिया एक साधारण से उपग्रह था जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहा था जैसे कि अरब हा अरब उपग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हैं। इस उपग्रहों पट्टी भटकता हुआ चाचा और पृथ्वी की शक्ति गुरुत्वाकर्षण के फंदे में फंस गया। मगर फिर करवीथनिया एक अजीब सी हरकत की वह बजाय पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटने के रास्ते सेझम चाँद करते पृथ्वी की कक्षा का पीछा करना शुरू कर दिया। उसे शायद पृथ्वी का चांद कह सकते हैं लेकिन यह वास्तव में पृथ्वी के चारों ओर नहीं बल्कि अपने स्वायत्त कक्षा में सूर्य के चारों ओर चक्कर काट रहा है।

कभी कभी उपग्रह अपना चाँद भी पकड़ लेते हैं। 1993 ؁य सीई गलील अंतरिक्ष यान आइडिया उपग्रहों (Ida Asteroid) के पास से गुजरा और वहाँ उसने जो देखा वह इस समय कोई सोच भी नहीं सकताथा। एक छोटे आधे मील का चाँद इस उल्का के चक्कर काट रहा था (देखें। फोटो नंबर 11)। अब तक केवल कोई अंतरिक्ष यान केवल दो शहाब्यूं के पास से ही बीता है जो एक का अपना चाँद है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि शहाब्यूं अपने चाँद होना ब्रह्मांड में एक आम सी बात होगी।

सारे मकी  चाँद छोटे नहीं होते। टराईटन (Triton) इन सब मकी  चंद्रमाओं का पिता है (देखें। फोटो नंबर 12)। इस ग्रह नेपच्यून के आसपास चक्कर काटता है। यह काफी बड़ा है और इसका व्यास लगभग "1700 ईमेल शामिल हैं। मगर टराईटन चाँद की अपनी एक अलग अनोखी कहानी है। टराईटन ने खगोलविदों मन की चूलें हिला कर रखी हुई थीं। आमतौर से यही माना जाता था कि जिस तरफग्रह खुद घूम रह  इसी से उसे चांदी भी कक्षा में घूम रहा है। मगर नेपच्यून के चाँद टराईटन का मामला तो बिल्कुल ही उलट था। नेपच्यून एक ओर घूम आर हा है जबकि उसका चाँद अपनी रोटेशन दिशा के विपरीत दिशा में घूम रहा है। इसका मतलब तो वैज्ञानिकों को यह समझ में आया कि उसके जन्म नेपच्यून ग्रह बनाने होने के बाद बचे ओर और धूल से नहीं हुई क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह उसी ओर चक्कर काटता जिसके द्वारा ग्रह खुद घूम रहे है। इसलिए कोई कुछ तो है जो उल्टी गंगा बहने के कारण बी नी है। टराईटन काफी बड़ा है और इसका कक्षा भी कुछ अजीब सा ही है। टराईटन खुद भी काफी अलग है और वैज्ञानिकों को लगता था कि यह नेपच्यून के चंद्रमाओं प्रणाली के तहत नहीं पैदा हुआ। ऐसा लगता है कि कोई बौना ग्रह (Dwarf Planet) था जो नेप्च्यून के बल गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव यहाँ कैद हो गया है। वैज्ञानिकों को यकीन हुआ चला है कि टराईटन, प्लूटो की ही तरह का कोई बौना ग्रह था और नेपच्यून जैसे विशालकाय ग्रह की शक्ति गुरुत्वाकर्षण जरूरी इतनी थी कि उसने एकटराईटन मात्रा का चाँद पकड़ लिया। जरूरी टराईटन सौर मंडल के बाहर ै हिस्से में पैदा हुआ था और किसी भी अवसर पर नेपच्यून की पकड़ में आ गया था। शायद टराईटन खुद भी चाँद था और वह भी उसके साथ ही पकड़ा गया था मगर बाद में वह हो गया होगा। टराईटन का अस्तित्व खतरे में है। नेपच्यून उसे अपने से करीब करीब रहा है। आखिर वह इतने करीब हो जाएगा कि नेपच्यून की जबरदस्त ताकत गुरुत्वाकर्षण इसे पारा पारा कर देगी। टराईटन चाँद नेपच्यून के छल्ले बनाकर फिर जीवित होगा।

मगर इस सिद्धांत की जांच कैसे की जा सकती है । नासा में ोरटिकल गन रेंज प्रयोगशाला में इस प्राचीन दुर्घटना टकराव दोहराया जा आर हा है । जहां एक 30 फुट लंबी बंदूक एक छोटी सी बात को 18 हजार मील प्रति घंटे की गति से फेंक है । इस छोटी सी बात थीा की नकल है जबकि जिस गेंद पर यह फेंकी जा रही है वह पृथ्वी की छवि है । इस अनुभव में वैज्ञानिकों की एक टीम ने विभिन्न कोणों से थीा जमीन पर मारा ताकि वह इस बात की जांच कर सकें कि किस कोण से थीा जमीन से टकराया जिससे चानदुका उपस्थिति हुआ । पहली टक्कर में थीा जमीन के ऊपरी हिस्से से टकराया । इस टक्कर में जमीन कुछ धूल और मिट्टी खाई में फेंक और उस पर एक बेसिन (Basin) बन गया । इस टा स हजारों ईमेल लंबा और चौड़ा था । उनके अनुभव में थीा ने केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह ही छैला था और धूल और गंदगी इतनी अधिक नहीं थी कि जिससे चंद्रमा पैदा हो सके । दूसरे अनुभव थीा सीधा जमीन से टकराया । इससे जमीन ही समाप्त हो गया । उसकी बची हुई मिट्टी कई अन्य छोटे ग्रह बना दिए । इसलिए जब जमीन ही नहीं रही तो चाँद कहाँ से आता । तीसरे परीक्षण में बंदूक का रुख फिर बदला और एक नए कोण से थीा जमीन से टकराई । इस अनुभव में वैज्ञानिकों ने देखा कि पृथ्वी शायद बच सकी । इस टक्कर में जमीन का एक बड़ा टकरा टूट गया और धूल और मिट्टी खाई में बिखर गई । यही चाँद के बनने की शुरुआत थी । अनुभव ने बताया कि थीा जमीन से टकरा कर पॉश पॉश सकता था और इस हादसे में चंद्रमा का निर्माण हो सकती थी । मगर इस संघर्ष को ठीक कोण से होना था । हमारी सौभाग्य ऐसा ही हुआ । आज चांद पृथ्वी से 250 हजार मील दूर है । मगर जब यह पहली बार बना था तो पृथ्वी से केवल 15 हजार मील ऊपर ही था । चाँद बनाने के हम 50 करोड़ साल बाद अगर स्वर्ग की ओर उठा कर देखा तो वे आकाश का काफी हिस्सा घेरे हुए दिखाई । वह बहुत ही बड़ा दिखाई क्योंकि वह जमीन से बहुत करीब था । इस समय पृथ्वी के घूर्णन इतनी तेज थी कि एक दिन छह घंटे में पूरा हो जाता था । चाँद पृथ्वी से इतना नजदीक होने की वजह से उसने एक ब्रेक की तरह काम किया और पृथ्वी के घूर्णन को धीरे क्या इतना धीरे कि अब उसकी रोटेशन 24 घंटे में पूरी हो जाती है । चाँद बल गुरुत्वाकर्षण महान मदो भाटा पैदा करती है । जिसमें से समुद्र में खनिज और गज़ायत बख्श घटकों हल हो जाती हैं यह ही वह पहला गाढ़ा पदार्थ बनाया जो जीवन शुरू हुआ । हमारे चंदा मामा के बिना पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती थी और शायद दूसरे चन्द्रमा जीवन पनपने के लिए योगदान कर सकते हैं

चाँद ब्रह्मांड के महान जैविक प्रयोगशाला हैं । चाँद हीरतों पहाड़ हैं । इन की विविध फया प्रकार के होते हैं । जिसमें महान ज्वालामुखी से लेकर विशाल सागर तक कर रहे हैं । अब हम जान चुके हैं कि वह जीवन को स्थायीकरण बख़्शने वाले यौगिकों से भरपूर हैं । हमारे सौर प्रणाली में मौजूद चांद ब्रह्मांड को समझने के लिए एक अच्छी जगह है । शायद हम यहाँ जीवन किसी रूप में ढूंढ ही निकालेंगे शायद यहाँ हमें ऐसी जीवन मिल सके जो ब्रह्मांड में मौजूद जीवन के बारे में रहस्य प्रकट करना 

पहली नज़र में कोई चाँद जीवन के लिए उपयुक्त नहीं लगता । ांसीलीडस को ही लीजिए । इस झिलमिलाता बर्फीले गेंद 300 मील तक फैली हुई इस शनि के आसपास चक्कर काट रही है । इस सौर प्रणाली के उज्जवल सबसे शरीर है । इस 100% प्रकाश प्रतिबिंबित करता है । यह बहुत उज्ज्वल है और चमकदार है । क्योंकि यह पानी की बर्फ से बना हुआ है । 2005 ؁ ई। गेमिंग खोजी ने यहां के बर्फीले ज्वालामुखी देखे जो इस स्तर पर मौजूद थे । इसका एक ही मतलब था कि उसके दिल में मौजूद तापमान ही यह काम कर रही होगी और तापमान ही पानी समुद्र बनाती है और जहां पानी होता है वहां जीवन होने की संभावना होती है । यहां मौजूद एक फव्वारा पानी 150 फीट की ऊंचाई तक फेंक रहा है । इस बहुत ही आश्चर्य गर्म और अविश्वसनीय है । आप ांसीलीडस स्तर पर खड़े हों तो आप देखेंगे कि वहाँ चश्मे बर्फ के कण और जल वाष्प खाई में मीलों दूर फेंक रहे होंगे 

बर्फीले ज्वालामुखी बल गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा पहुँचाती है । यहाँ शनि की शक्ति उसे चांदी के दिल को गर्मी रही है । इस स्तर के नीचे मौजूद पानी गर्म होकर फैलता है और स्तर से फट कर बाहर निकलता है और वातावरण में बर्फ की कलमें बना कर उछाल देता है । इस सौर प्रणाली के कुछ शानदार नज़रों में से एक हैं । उन्हें आग फशानीों बर्फ में वैज्ञानिकों को सरल जैव संरक्षित मिले हैं । जिसका मतलब है कि जमीनी स्तर के नीचे मौजूद पानी न केवल गर्म है बल्कि जैविक यौगिकों से भी भरपूर है । जीवन की शुरुआत के लिए तीन महत्वपूर्ण चीजें यानी गर्मी, पानी और गज़ायत से भरपूर सामग्री भूमि समुद्र में मौजूद होती हैं ये तीनों चीजें वहाँ पर भूमिगत महासागरों में भी मौजूद हो सकता है । यह एक जबरदस्त खोज की थी कि ांसीलीडस भूमिगत सागर मौजूद है और शायद बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा में भी मगर सिर्फ यही वह चाँद नहीं हैं जहां जीवन शुरू हो सकती है । शनि का एक और चाँद टाइटन जहां जीवन शुरू होने की संभावना सबसे अधिक है 

2005 ؁ ई। गेमिंग एक खोजी जिसका नाम हाई बंदूकें (Huygens) था वह एकतरफा मिशन पर टाइटन पर भेजा । केवल 31 । 5 घंटे हाई बंदूक नेबराह प्रत्यक्ष टाइटन की सतह की तस्वीरें पृथ्वी से एक अरब मील सेभेजें । इसके बाद उसकी बैटरी खत्म हो गई । इस बहुत ही रोमांचक था पहली बार इंसान की बनाई हुई किसी चीज ने इस स्तर को छुआ था । इस एक ऐसा अवसर था जिसे पूरी दुनिया में मनाना चाहिए था । यह वास्तव में ऐतिहासिक क्षण था 

टाइटन में बारिश की बूंदों जमीन से दोगुने होते हैं मगर वहाँ बारिश पानी नहीं बल्कि मीथेन की होती है (देखें। फोटो नंबर 13) । जमीन पर मीथेन गैस के रूप में मौजूद होता है लेकिन टाइटन पर यह तरल अवस्था में पाई जा होती है । क्योंकि वहां तापमान काफी कम होता है । हो सकता है कि वहाँ कोई मीथेन की बर्फ भूस्खलन मौजूद हूँ, यह भी संभव है कि झीलों, नदी, बारिश और बादल सब मीथेन हूँ और हो सकता है कि कभी कोई कीड़ा भी मीथेन में तैर पाएंगे । तरल मीथेन में पलने वाले कीड़े सोचकर ही अजीब महसूस होते हैं । वैज्ञानिक यह पता कर चुके हैं कि ांसीलीडस, यूरोपा और टाइटन सब एक पदार्थ जिसका नाम थोलैं ( Tholin ) है से भरपूर हैं । थोलैं जीवन शुरू करने वाले मुख्य कारक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । हो सकता है कि जीवन एक या एक से अधिक अतिरिक्त ग्रह चंद्रमाओं पर दिखाई जाए

क्रिस मकाओ (Chris Mckay ) थोलैं बनाने की प्रक्रिया को प्रयोगशाला में दोहरा रहे हैं । उन्होंने टाइटन में पाए जाने वाले मिश्रण को बिजली के साथ मिलाया तो उन्हें एक लाल भूरे रंग के घोल मिला जो हमथोलैं कहते हैं । यह गैर जैविक और गैर कार्बनिक मिश्रण है । उन्होंने रासायनिक ऊर्जा से बनाया जो नाइट्रोजन और मीथेन शामिल हैं और यह गैसों टाइटन में आम पाई जाती हैं । वैज्ञानिकों ने ऐसे सबूत ांसीलीडस में भी देखे हैं । बल्कि सूर्य के बाहरी कक्षा में मौजूद अक्सर चंद्रमाओं पर इस प्रकार के मिश्रण पाए गए हैं । यह स्वाभाविक वे घटकों disassembly के हैं जिनसे अंततः जीवन दिखाई जाती है सूर्य के बाहरी कक्षा में मौजूद किसी चांद पर हो सकता है जीवन की शुरुआत हो चुकी हो । मगर शायद वह जीवन इस जीवन से काफी अलग हो जो हम पृथ्वी पर देखते हैं । यह जीवन का संस्करण 2 हो जो जीवन के संस्करण 1 से काफी अलग हो । दरअसल जीवन 2 जितनी अधिक अलग होगी इतनी अधिक दिलचस्प होगी । चाहे यह जीवन में पाई जाने वाली जीवन के समान हो या अलग, सूर्य के बाहरी कक्षा में पाए जाने वाले इन चंद्रमाओं में मिलने वाली जीवन हमें ब्रह्मांड में मौजूद जीवन ढूँढने के तरीके को बदल कर रख देगी । अगर हम सौर प्रणाली में जीवन को किसी अन्य स्थान पर ढूँढने में सफलहो गए तो हम बहस को खत्म कर सकते हैं कि हम और हमारे जीवन ब्रह्मांड में अद्वितीय और अनोखी है 

चंद्रमा ग्रहों की तुलना में हालांकि छोटे होते हैं, लेकिन वे बहुत विविध फया और गतिशील होते हैं । यह हमें ब्रह्मांड के काम करने की प्रक्रिया को समझने में मदद करते हैं । यह कोनियाती प्रणाली का अभिन्न हिस्सा हैं । चंद्रमाओं के बिना हमारा सौर मंडल बिल्कुल ही िलीहदह होता । हम जानते हैं कि हमारे अपने चंदा मामा के बिना पृथ्वी पर जीवन कभी पनप ही नहीं सकती थी   

  ___________________________________ समाप्त शुद _________________________________